
बस्तर की संस्कृति और परम्पराएं आदिवासियों को रखती है सबसे अलग।
पखांजूर से बिप्लब कुण्डू–10.3.22
मौत पर गीत गाकर दी जाती है अंतिम विदाई गोंड आदिवासियों में नहीं है कोई वर्गभेद।
पखांजूर–
बस्तर सदियों से अनूठा है और अनूठी है बस्तर की संस्कृति सभ्यता और उसकी परम्परायें…. जहाँ बस्तर के भोलेभाल आदिवासियों का हर दिन एक उत्सव है जहाँ उनकी की दिन शुरुवात गीत से शुरू हो शाम को गोटूल में रेला गीत से खत्म होता है….बस्तर के आदिवासी अपनी अनूठी परम्पराओं के साथ जुड़कर प्रकृति पर पुरी तरह निर्भर है जहाँ जन्म से लेकर मरण तक आदिवासी प्रकृति के नियमों पर ही गुजर बसर करते है….आदिवासियों के जीवन में ऐसा कोई दिन नहीं होता जब वे उत्सव नहीं मानते हो यहाँ ताकि जब उनके घरों में किसी अपने की मौत भी हो जाए तो गीत गाकर उसे अंतिम विदाई देते है….वैसे तो सभी समाजों में प्रमुख रूप से तीन ही संस्कार है जिसमें जन्म मरण और विवाह अपने-अपने रीति नीति मानते है….लेकिन बस्तर का आदिवासी समुदाय ऐसा है जिसकी रीति नीति सब लोगों उन्हें भिन्न करती है….वैसे तो आदिवासी समाज में हर पर्वों के गीत है लेकिन हाना पाटा एक ऐसा गीत है जब किसी आदिवासी के मौत पर ही गाया जाता….लेकिन अब आधुनिकीकरण के धुंध में वो गीत भी धुंधली आँखों के साथ धीरे-धीरे धुंधला होता जा रहा है आदिवासी समाज किसी के मौत पर गाये जाने वाले हाना पाटा गीत पर समाज के लोग बताते है की बस्तर में आदिवासी तो कई तरह के है लेकिन इस परम्परा का निर्वहन सिर्फ गोंड आदिवासी समुदाय में किया जाता है…जिसमें प्रकृति की हर घटनाओं को उत्सवपूर्वक मनाया जाता है जिसमें मृत्यु-संस्कार भी शामिल मृत्यु-संस्कार पर गाये जाने हाना पाटा गीत सदियों से गाया जा रहा है इस गीत के माध्यम से मृत व्यक्ति के पुरे जीवन काल को गीत के माध्यम से वर्णन किया जाता है कही उसके मौत पर दुःख वेदना का ज़िक्र नहीं होता हंसी खुशी के साथ उसे अंतिम विदाई दी जाती है जो सिर्फ गोंड जनजाति में किया जाता है साथ ही इस गीत के माध्यम से मृत व्यक्ति के आत्म को देवी देवता मानकर घरों में शामिल किये जाने की परम्परा शामिल है….वे मानते है की जो समाज में बचे हुए बुजुर्ग है वे ही इस अनूठी परम्परा का निर्वहन कर रहे है….गोंडी बोली से आदिवासी युवाओं की धीरे-धीरे बढ़ते दूरी ने इस गीत को भी विलुप्ति कागर पर ला दिया है लेकिन उनके समाज का प्रयास है की किसी भी इस परम्परा को संरक्षित रखा जाए….आदिवासी समाज दो दिनों तक गाये जाने वाले हाना पाटा गीत के अलावा कुछ और भी परम्पराए जुडी हुई है जो वास्तव में आदिवासी कौम को दूसरों से अलग रखती है….आदिवासी समाज के मृत्यु-संस्कार कार्यक्रम में होली दीवाली की तरह रंगों और फाटके भी फोड़े जाते है….मृत व्यक्ति का स्मारक समाज के एक-एक लोग पत्थर रखकर निर्माण करते है जिसमे घर की बहु बेटियाँ नये कपड़े पहनकर अपने पल्लू से मिट्टी इकठ्ठा करती है इस तरह ऐसे कई परम्परा का आदिवासियों मृत्यु-संस्कार में शामिल है जो सिर्फ बस्तर में देखा जा सकता है….आदिवासियों समाज की तमाम परम्पराओं में एक सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये नजर आती है की आदिवासी समाज में किसी तरह के कोई वर्ग भेद नहीं है….हर उत्सव में महिलाओं का पुरुषों के जैसे ही बराबर अधिकार है जिनका सीधा सम्पर्क प्रकृति पर आधारित है।